21 September 2019



ईमानदारी – एक जीवन शैली

इस विषय पर कुछ भी लिखने से पहले यह समझ्‍ना जरुरी है कि ईमानदारी वास्‍तव में है क्‍या?
अगर सीधे साफ शब्‍दों में कहें तो ईमानदारी एक नैतिक सिद्धांत है।
नैतिक सिद्धांत कभी सार्वभौमिक नहीं हो सकते।
कहने को अच्‍छा लगता है कि ईमानदारी एक जीवन शैली हो लेकिन किस की?
ईमानदारी एक ऐसा विशेषण है जो अत्‍यधिक क्रियाओं का आभूषण है।
और स्‍मरण रहे आभूषण केवल पहना जाता है जो एक सभ्‍य समाज की आवश्‍यकता है ताकि वह सभ्‍य कहला सके।
समाज कभी सभ्‍य नहीं हो सकता क्‍योंकि सामाजिक सम्‍पन्‍नता एवं सम्‍पूर्णता एक सपना है।
ईमानदारी सम्‍पन्‍न समाज पर खिलने वाला फूल है।
फूल खिलने तक की यात्रा अत्‍यधिक विषमताओं से भरी पड़ी है।
किसी समाज का कोई भी व्‍यक्ति यदि ईमानदार नही है तो इसका अर्थ है अभी समाज सभ्‍य और सम्‍पन्‍न नहीं हुआ।
तो एक बात तय है कि अगर समाज इतना सम्‍पन्‍न है कि भौतिकता का अम्‍बार उपलब्‍ध है तो ईमानदारी वास्‍तविक होगी जैसे कि शरीर का प्राकृतिक सौंदर्य। 
अगर समाज अभी संक्रमण काल मे है तो जितना भी प्रयास कर लें, ईमानदारी एक आरोपित आभूषण ही रहेगी।
असम्‍पन्‍न समाज जो अभी अर्थ और काम मे उलझा पड़ा है उसके लिए नीति, धर्म और मोक्ष मात्र कपोल-कल्‍पना हैं।
असम्‍पन्‍न समाज के लिए जीवन यापन सबसे गम्‍भीर समस्‍या है।
उसके लिए केवल वस्‍तुएं ही अर्थपूर्ण हैं नीति नहीं।
जब तक व्‍यक्ति को भौतिक वस्‍तुओं में अर्थ है तब तक ईमानदारी जीवन शैली नहीं बन सकती।
इस स्थिति में हमारे पास केवल एक उपाय बचता है कि ईमानदारी के प्रति बाध्‍यता पैदा करने के लिए इसको दण्‍डनीय अपराध बना दिया जाए।
लेकिन दण्‍ड के भय से कोई ईमानदार है तो उसकी ईमानदारी दो कौड़ी की है।
वैसे इस समय हमारी सरकारें या वैधानिक एजेंसियां नीति लागू करने के लिए दण्‍ड का मार्ग ही अपनाती हैं।
लेकिन बिडम्‍बना देखिये – अर्थ और भौतिक वस्‍तुओं में इतना आकर्षण है कि व्‍यक्ति कड़े दण्‍ड को भी सहने के लिए तैयार हो जाता है।
क्‍या आपने यह कहावत सुनी है कि वही ईमानदार है जिेसे अवसर नहीं मिला? वैसे ऐसा कहना कुछ ज्‍यादती है।
नैतिकता सदैव मनुष्‍य समाज की समस्‍या रही है।
मनुष्‍य सम्‍पूर्णतया कभी भी ईमानदार नहीं था, नीति नीयत नहीं बन सकी।
जिस दिन मनुष्‍य भौतिकता के आधार पर सम्‍पूर्णतया सम्‍पन्‍न होगा, उसी दिन बिना बोले, बिना किसी सजा के प्रावधान के मनुष्‍य ही नहीं, सम्‍पूर्ण मानव समाज नैतिक होगा, वह सब नियमों का स्‍वेच्‍छा से पालन करेगा।
तो प्रश्‍न उठता है कि क्‍या इस समाज में कोई ईमानदार नहीं?
नहीं, ऐसा नहीं है। 
इतनी विषमताओं के बावजूद आज भी बहुत संख्‍या में इस देश में लोग ईमानदार हैं।
इसका कारण है कि वे अपने पास उपलब्‍ध संसाधनों से संतुष्‍ट हैं।
वे उतने ही पैर पसारते हैं जितनी उनकी चादर लम्‍बी है।
वे सम्‍पन्‍नता और भौतिकता से परे सामाजिक नियमों को प्राथमिकता देते हैं।
वे विलासिता को आदर्श नहीं मानते।
वे संतोष को सम्‍पन्‍नता मानते हैं लालच काा लावण्‍य उन्‍हें आकर्षित नहीं करता। 
वे नैतिक शिक्षाओं को सभ्‍यता की कसौटी मानते हैं।
वे समाज द्वारा निर्धारित मानदण्‍डों का पालन करना अपनी मर्यादा समझते हैं। 
उनके ऊपर ईमानदारी थोपी नहीं गई है, अपितु सहज स्‍फूर्त है।
आओ हम सभ्‍य समाज का हिस्‍सा बनें और नीति को स्‍वेच्‍छा से अपनायें न कि किसी पाप या दण्‍ड के भय से।
वैसे "चोरी के फल मीठे होते हैं" और "पड़ोसी की पत्‍नी सुंदर" यह कहावतें बनाने वाले
न जाने ईमानदार थे या नहीं। 
गालिब केे एक शेर से यह लेख समाप्‍त करना चाहूंगा
हमको मालूम है जन्‍नत की हकीकत लेकिन,
दिल के बहलाने को गालिब ख्‍याल अच्‍छा है। 

ईमानदारी – एक जीवन शैली इस विषय पर कुछ भी लिखने से पहले यह समझ्‍ना जरुरी है कि ईमानदारी वास्‍तव में है क्‍या ? अगर सीधे साफ शब्‍दो...